Saturday, August 27, 2011

Fwd: भाषा,शिक्षा और रोज़गार



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From: भाषा,शिक्षा और रोज़गार <eduployment@gmail.com>
Date: 2011/8/27
Subject: भाषा,शिक्षा और रोज़गार
To: palashbiswaskl@gmail.com


भाषा,शिक्षा और रोज़गार


छत्तीसगढ़ःसेकंड शिफ्ट वाले कॉलेज बीई की काउंसिलिंग से बाहर

Posted: 26 Aug 2011 12:39 PM PDT

छत्तीसगढ़ में द्वितीय पाली में इंजीनियरिंग कॉलेज चलाने वाले संचालकों को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले से तगड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने बुधवार को एक अहम फैसला करते हुए सेकंड शिफ्ट वाले इंजीनियरिंग कॉलेजों को राज्य सरकार की अनुमति और तकनीकी विश्वविद्यालय की संबद्धता के बिना काउंसिलिंग में शामिल होने पर रोक लगा दी है।

उच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि द्वितीय पाली वाले इंजीनियरिंग कॉलेज काउंसिलिंग में तभी शामिल हो सकते हैं जब राज्य सरकार उन्हें इसके लिए अनुमति दे। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ तकनीकी शिक्षा विभाग ने हर साल इंजीनियरिंग कॉलेजों में हजारों सीटें खाली रह जाने की वजह से इस वर्ष नए कॉलेजों पर रोक और सेकंड शिफ्ट वाले सात इंजीनियरिंग कॉलेजों को काउंसिलिंग से बाहर करने का फैसला लिया था।


सरकार के इस फैसले के विरोध में द्वितीय पाली में इंजीनियरिंग कॉलेज चलाने वाले महानदी एजुकेशन सोसाइटी समेत दो कॉलेजों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कॉलेजों को काउंसिलिंग में शामिल करने की अपील की थी। उच्च न्यायालय ने इस अपील को पर बुधवार को अपना फैसला सुना दिया। 
सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी : 

छत्तीसगढ़ में वर्तमान समय में 57 इंजीनियरिंग कॉलेज संचालित हैं। इसमें तीन शासकीय, दो स्वशासी, 45 निजी और सात सेकंड शिफ्ट वाले इंजीनियरिंग कॉलेज शामिल हैं। 

उच्च न्यायालय के फैसले के बाद द्वितीय पाली में भी इंजीनियरिंग कॉलेज चलाने वाले प्राइवेट कॉलेजों के संचालकों को तगड़ा झटका लगा है। पहले से ही खाली सीटों की मार झेल रहे कॉलेजों को काउंसिलिंग से बाहर होने पर कॉलेज चलाने का संकट खड़ा हो रहा है। इन कॉलेजों के संचालक अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मन बना रहे हैं।

ये कॉलेज काउंसिलिंग से बाहर

- भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी भिलाई हाउस दुर्ग। 

- छत्रपति शिवाजी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी दुर्ग। 

- दिशा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी रायपुर। 

- छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी राजनांदगांव। 

- रायपुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रायपुर। 

- 06. रूंगटा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी भिलाई 

- श्री शंकराचार्य कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी भिलाई।

छात्रों के दस्तावेज वापस करने होंगे

सेकंड शिफ्ट वाले कॉलेजों ने कई छात्रों के दस्तावेज अपने पास जमा कर रखे थे। कॉलेज प्रंबंधन ने छात्रों को आश्वासन दिया था कि हाईकोर्ट से फैसला आने के बाद उन्हें द्वितीय पाली के कॉलेजों की बेहतर ब्रांचों में प्रवेश दिया जाएगा, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के बाद उनके सारे आश्वासन धरे के धरे रह गए। 

ऐसे में अब उन्हें छात्रों को ओरिजनल दस्तावेज वापस करने होंगे, जिससे छात्र दूसरे कॉलेजों में प्रवेश ले सकेंगे(दैनिक भास्कर,रायपुर,25.8.11)।

महाराष्ट्र में शिक्षक सेवकों को भविष्य निर्वाह निधि मिलेगी

Posted: 26 Aug 2011 12:26 PM PDT

राज्य सरकार ने शिक्षक सेवकों के लिए भविष्य निर्वाह निधि लागू करने का ऐलान किया है।

हालांकि मानधन में बढ़ोतरी और तीन साल का कार्यकाल कम करने की मांग के बारे में सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है। शिक्षा सेवक पिछले कई सालों से अपना मानधन बढ़ाने और पद का कार्यकाल कम करने की मांग कर रहे हैं।

फैसले के मुताबिक भविष्य निर्वाह निधि की सुविधा उन सभी शिक्षा सेवक, कृषि सेवक और ग्राम सेवकों को दी जाएगी, जो एक नवंबर-2005 के पहले इस सेवा में नियुक्त किये गए थे। साथ ही उन्होंने मानधन का कार्यकाल पूरा किया था।


जिन शिक्षा सेवक, कृषि सेवक या ग्राम सेवकों ने मानधन की सेवा कालावधि पूरा किये बिना एक नवंबर, 2005 से पहले यह सेवा छोड़कर दी थी और किसी दूसरी सेवा में शामिल हो गए थे, उन्हें उस नियुक्ति के दिन से भविष्य निर्वाह निधि की सुविधा मुहैया कराई जाएगी। 
साथ ही जिन शिक्षक सेवक, कृषि सेवक और ग्राम सेवकों ने मानधन की कालावधि पूरी करने के बाद यह सेवा छोड़ी थी, उन्हें पेंशन की बजाय अंशदान सेवानिवृत्ति वेतन दिया जाएगा।

तीन साल तक सरकार को अपनी सेवा देने के बावजूद शिक्षा सेवकों को शिक्षक नहीं बनाया गया। इस कारण शिक्षा सेवक सरकार से बेहद नाराज हैं और अब वे मानधान बढ़ाने व तीन साल की समय सीमा को घटाने की मांग भी कर रहे हैं। 

शिक्षा सेवकों का मानधन बढ़ाने के बारे में सरकार ने अक्टूबर, 2008 में पवार समिति का गठन किया था। समिति ने फरवरी-2009 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। 

इसके बावजूद मानधन बढ़ाने के मामले पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। मौजूदा हालात को देखते हुए ये शिक्षा सेवक बहुत कम मानधन में सरकार को अपनी सेवा दे रहे हैं। 

प्राथमिक शिक्षा सेवक को सरकार की तरफ से महज तीन हजार रुपए, माध्यमिक शिक्षा सेवकों को चार हजार रुपए और उच्च माध्यमिक शिक्षा सेवकों को पांच हजार रुपए प्रति माह दिये जाते हैं। 

इतने कम मानधन को लेकर सरकार की कई बार आलोचना होती रही है। स्कूल प्रबंधनों ने सवाल उठाये हैं कि इस आधार पर सरकार शिक्षा के स्तर को उठाने का दावा कैसे कर सकती है।

शिक्षकों की बढ़ती मांगों को देखते हुए 13 अक्टूबर-2000 में सरकार ने फैसला किया कि वह शिक्षा सेवकों की तीन साल के लिए नियुक्ति करेगी और तीन साल पूरे करने शिक्षा सेवकों को शिक्षक के तौर पर नियुक्त किया जाएगा। लेकिन सरकार ने अपने वादे पर अमल नहीं किया(दैनिक भास्कर,मुंबई,26.8.11)।

जमशेदपुरःयहां के स्कूल में होती है ऐसी जांच कि शर्मा जाते हैं छात्र!

Posted: 26 Aug 2011 12:21 PM PDT

झारखण्ड के औद्योगिक राजधानी जमशेदपुर में एक ऐसा स्कूल है जहां विद्यार्थियों के अंडरगारमेंट्स की जांच की जाती है। 'एसडीएसएम स्कूल फॉर एक्सीलेंस' नामक यह स्कूल शहर के सिदगोड़ा क्षेत्र में स्थित है। इस बात का खुलासा होते ही विद्यार्थियों के अभिभावकों में हलचल मच गई है। जो सुन रहा है वो भौचक्का हो रहा है।

कैसे हुआ खुलासा ?

स्कूल के कुछ छात्रों ने जमशेदपुर की उपायुक्त हिमानी पांडे को एक पत्र भेज इस मामले की जानकारी दी है। छात्रों ने स्कूल प्रबंधन द्वारा अपने पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया है। छात्रों के पत्र को गंभीरता से लेते उपायुक्त ने जिला शिक्षा पदाधिकारी को पूरे मामले की जांच करने का आदेश दिया है। जिला शिक्षा पदाधिकारी अशोक कुमार शर्मा ने बताया कि जल्द मामले की जांच की जाएगी। इसके लिए एक टीम का गठन कर दिया गया है।


विद्यार्थियों ने पत्र में कहा है कि स्कूल में छात्रों की छोटी-छोटी गलतियों को लेकर कड़ी सजा दी जाती है। पढा़ई-लिखाई पर ध्यान नहीं दिया जाता है। पत्र में यह भी कहा गया है कि अगर किसी विद्यार्थी के बाल बढ़े होते हैं तो उसे स्कूल में ही अन्य छात्रों के सामने कटवा दिया जाता है। ऐसे में छात्र शर्मिंदा होते हैं।
इस पूरे मामले को स्कूल प्रबंधन सिरे से खारिज कर दिया है। एसडीएसएम स्कूल फॉर एक्सीलेंस की प्राचार्या श्यामली विरदी ने आरोपों को नकारते हुए कहा है कि यह काम कुछ शरारती छात्रों का है। ये ऐसे छात्र हैं जिनका मन पढा़ई में नहीं लगता और वे स्कूल के शैक्षणिक माहौल को बिगाड़ना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि स्कूल प्रबंधन खुद से भी इस पूरे मामले की जांच करेगा और दोषी पाए जाने वाले विद्यार्थियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगा(अनिमेष नचिकेता,दैनिक भास्कर,जमशेदपुर,26.8.11)।

मेडिकल प्रोफेसर्स का वेतन बढ़ाने की तैयारी, फाइल वित्त विभाग में

Posted: 26 Aug 2011 12:32 PM PDT

मेडिकल प्रोफेसर्स को जल्द ही वेतन में बढ़ोतरी की खुशखबरी मिल सकती है। इससे संबंधित फाइल वित्त विभाग के पास पहुंच गई है। सबकुछ ठीक रहा तो इसे जल्द ही कैबिनेट में रखा जा सकेगा। इन प्रोफेसर्स की मांग के बाद राज्य सरकार यह कार्रवाई कर रही है।

पिछले पांच सालों में प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों से करीब 100 डॉक्टर नौकरी छोड़कर जा चुके हैं। ज्यादा वेतन की चमक के चलते सरकारी कॉलेज से नौकरी छोड़कर डॉक्टर निजी कॉलेजों की ओर रुख कर रहे हैं।

आक्रोशित डॉक्टरों का कहना है कि सालों तक कठिन पढ़ाई के बावजूद हमें अन्य प्रदेशों की तुलना में कम वेतन मिल रहा है। यूजीसी वेतनमान लागू होने के बाद 'कला' के प्रोफेसर को हमसे ज्यादा वेतन मिल रहा है, वहीं हमारा विभाग हमारी उपेक्षा कर रहा है। इंदौर मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन ने शासन को पूरा रिपोर्ट कार्ड दिया है। इसमें सूचीवार सभी राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में मिलने वाले वेतन का विवरण दिया है।

सूची चिकित्सा शिक्षा मंत्री, प्रमुख सचिव सहित आला अधिकारियों को दी गई है। अन्य सारे राज्यों में चिकित्सा शिक्षा विभाग ने यूजीसी वेतनमान लागू कर दिया है। वहां एकेडेमिक अलाउंस भी कम मिलता है जबकि मप्र यह नहीं दिया जा रहा है। हालांकि उच्च शिक्षा विभाग में छठे वेतनमान के बाद 50 से 1 लाख तक वेतन दिया जा रहा है।


चिकित्सा शिक्षा राज्यमंत्री महेन्द्र हार्डिया ने बताया यह बात सही है कि उन्हें अन्य विषयों के टीचर्स के समकक्ष वेतनमान भी नहीं मिल पा रहा है। यूजीसी वेतनमान लागू होने के बाद उन्हें अच्छा वेतन मिल रहा है। सरकार इस पर विचार कर रही है। फाइल वित्त विभाग के पास भेजी गई है। इसके बाद केबिनेट में प्रस्ताव रखा जाएगा।

एमपी मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन अध्यक्ष डॉ. पी.एस. ठाकुर ने बताया यूनिवर्सिटी में अन्य विषयों के प्रोफेसरों को हमसे अधिक वेतन मिलता है। वहीं छत्तीसगढ़ सहित अन्य प्रदेशों के मेडिकल कॉलेजों में भी अच्छा वेतन मिल रहा है। सिर्फ मप्र में ही मेडिकल टीचरों को कम वेतन मिल रहा है(दैनिक भास्कर,इन्दौर,26.8.11)।

बिहारःमोतिहारी में केंद्रीय विवि पर सहमति बनी

Posted: 26 Aug 2011 12:23 PM PDT

मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने गुरुवार को कहा कि मोतिहारी में केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने के बारे में राज्य के साथ विचार-विमर्श के कोई फैसला किया जाएगा। बिहार के सभी दल के सांसदों के दबाव पर उन्होंने कहा राज्य सरकार अगर पटना के करीब इसे खोलने के लिए तैयार होती है तो केन्द्र उसे मोतिहारी में एक और विश्र्वविद्यालय के लिए मदद देने को तैयार है। राज्यसभा में चर्चा के जवाब में सिब्बल ने कहा बिहार में केंद्रीय विश्वविद्यालय के मामले में केंद्र सरकार चाहती है इसे ऐसी जगह बनाया जाए जिससे राज्य के अधिक से अधिक छात्रों को लाभ मिल सके। उन्होंने कहा इसके लिए पटना, गया और नालंदा जैसी जगहों के नाम सुझाए गए हैं। उन्होंने कहा,मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ कई पत्रों का आदान-प्रदान हुआ है और विचार- विमर्श जारी है। उत्तर प्रदेश के बारे में सिब्बल ने कहा कि वहां पहले से ही चार केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं। केंद्रीय विश्र्वविद्यालयों के नामांकन का 39 प्रतिशत यहीं के लिए होता है। इसलिए यहां अब एक और केंद्रीय विश्र्वविद्यालय खोलने का प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने कहा, उत्तर प्रदेश और बिहार को शिक्षा के लिए केंद्र से पर्याप्त सहायता दी जा रही है। हालांकि दोनों राज्यों में अभी और निवेश की आवश्यकता है। इससे पूर्व उच्च शिक्षा के मुद्दे पर आधे घंटे की चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री ने मोतिहारी में केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने के लिए केन्द्र सरकार को कई पत्र लिखे, लेकिन मुख्यमंत्री की बात पर शायद ध्यान नहीं दिया। रूड़ी के अलावा एनके सिंह, रामविलास पासवान और राजनीति प्रसाद सहित बिहार के कई अन्य सदस्यों ने भी मोतिहारी में ही केंद्रीय विवि खोलने की मांग की। बसपा के नरेश चंद्र अग्रवाल ने केंद्र पर उत्तर प्रदेश के साथ शिक्षा के मामले भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य की आबादी को देखते हुए वहां और केंद्रीय विश्वविद्यालय खोले जाने चाहिए और उसे ज्यादा आर्थिक मदद देनी चाहिए। बसपा के ही अखिलेश दास ने अंबेडकर विवि की खराब स्थिति का मामला उठाया(दैनिक जागरण,दिल्ली,26.8.11)।

हिमाचलःअस्थायी नियुक्तियां बंद करने की हाईकोर्ट की सलाह

Posted: 26 Aug 2011 12:20 PM PDT

प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार को आदेश दिए हैं कि किसी भी विभाग में अस्थायी अथवा एडहॉक नियुक्तियां न करे। मुख्य न्यायाधीश कुरियन जोसेफ व न्यायाधीश राजीव शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि ये अस्थायी नियुक्तियां चाहे जिस किसी नाम से की जा रही हो, बंद होनी चाहिए।

न्यायालय का मानना है कि ऐसी नियुक्तियां अक्सर पिछले दरवाजे से चहेतों को लाभ देने के लिए की जाती है और बाद में इन्हीं नियुक्तियों को स्थाई कर दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि नियुक्तियां स्थाई तौर पर ही होनी चाहिए। उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि कोई नियुक्तियां सरकार द्वारा की जाती है तो आगामी समय में सभी नियुक्तियां भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत होनी चाहिए।

उपरोक्त आदेश उच्च न्यायालय ने पंकज कुमार की याचिका में दिए। इसमें याचिकाकर्ता का आरोप है कि प्रदेश सरकार में एडहॉकिज्म की परंपरा बनती जा रही है और नियुक्तियां बिना आधार के सरकारी आदेशों व विभिन्न किस्म की अधिसूचनाओं से कर दी जाती है। कभी-कभी तो पदों की जानकारियां भी जनता तक नहीं पहुंचाई जाती।


याचिकाकर्ता ने अदालत से गुहार लगाई है कि सरकार को आदेश दिए जाएं कि वह अस्थाई नियुक्तियां करना बंद करे व समय-समय पर जारी ऐसी नीतियां, स्कीम, सर्कुलर, निर्देश, आदेश व ग्रांट इन ऐड रूल्स समाप्त किए जाएं। याचिकाकर्ता ने ऐसी सभी नियुक्तियों को स्थाई करने से रोकने की भी गुहार अदालत से लगाई है ताकि प्रदेश के योग्य उम्मीदवार बिना भेदभाव व पक्षपात के नियुक्तियों में भाग ले सके(दैनिक भास्कर,शिमला,26.8.11)।

महाराष्ट्रःनक्सल प्रभावित जिलों की आश्रमशालों में केजी से पीजी तक मिलेगी शिक्षा

Posted: 26 Aug 2011 12:18 PM PDT

महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित पांच जिलों में आदिवासियों के बच्चों की शिक्षा के लिए बने आश्रम स्कूलों में अब केजी से पीजी (स्नातकोत्तर) तक की शिक्षा दी जाएगी।

यह जानकारी महाराष्ट्र के आदिवासी विकास मंत्री बबनराव पाचपुते ने केंद्रीय आदिवासी मामले के मंत्री वी. किशोर चंद्र देव से गुरुवार को दिल्ली में मुलाकात के बाद दी।
उन्होंने बताया कि इस वक्त महाराष्ट्र में आदिवासी छात्रों को प्रतिमाह अनुग्रह राशि के रूप में 650 रुपए मिलते हैं। जिसे उन्होंने केंद्रीय मंत्री से बढ़ाने की मांग मुलाकात के दौरान की।

पाचपुते ने बताया कि आदिवासी समुदाय को आवास मुहैया कराने के लिए विश्व बैंक और एशियाई बैंक की मदद से एक योजना भी शुरू की जाएगी।
महत्वपूर्ण है कि अपने विभाग और अहमदनगर जिले में जारी विकास कार्यो के मुद्दे पर उन्होंने केंद्रीय मंत्री शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला, सी.पी. जोशी, प्रफुल्ल पटेल और जयराम रमेश से भी मुलाकात की(दैनिक भास्कर,मुंबई,26.8.11)।

राजस्थानः62 हजार सीट हैं ज्यादा, 2017 तक बीएड कॉलेज न खोलने का सुझाव

Posted: 26 Aug 2011 12:15 PM PDT

प्रदेश के बीएड कॉलेजों में 62 हजार सीटें जरूरत से ज्यादा हैं। ऐसे में वर्ष 2017 तक नए कॉलेज खोलना उचित नहीं है। एनसीटीई ने एक रिपोर्ट जारी कर ये सुझावदिए हैं। इधर, इस साल बीएड कॉलेजों मेंसाढ़े सात हजार और बीएसटीसी में तीनहजार से अधिक सीटें अब भी खाली पड़ी हैं, जिन्हें भरने के लिए काउंसलिंग के लिएकॉलेज संचालक शिक्षा मंत्री तक चक्कर लगा रहे हैं। खाली सीटों की स्थिति के बीच एनसीटीई की सर्वे रिपोर्ट बीएड कॉलेज संचालकों के लिए मुसीबत भरी है, तो विधानसभा में उठे एक सवाल ने शिक्षा विभाग सहित कॉलेज संचालकों में हलचल मचा दी है।

ये है एनसीईटी की रिपोर्ट


एनसीटीई की रिपोर्ट पर गौर करें तो प्रदेश में 62 हजार 137 सीटें जरूरत से ज्यादा बताते हुए कहा गया है कि वर्ष 2016-17 तक नए कॉलेज नहीं खोले जाएं। तो बीएसटीसी में 6078 सीटें जरूरत से ज्यादा हंै। सात सालों में धड़ाधड़ खुले कॉलेजों की वजह से 90 हजार सीटें हो गई हंै। दो साल पहले 500 कॉलेज मान्यता की कतार में थे और इन दो दिनों में करीब 300 फाइलें और लग गई। यानी बीएड कॉलेज खोलने में इनवेस्ट अब भी सबसे ज्यादा है।
क्यों बनी ऐसी स्थिति : नौकरियों के अवसर लगातार कम हो रहे हैं तो टेट की वजह से भी रुझान कम हो रहा है। जबकि बीएड कॉलेजों में पांच सालों के दरमियान सबसे अधिक वृद्धि हुई। पिछले तीन सालों में शिक्षा विभाग में नौकरी के दरवाजे बंद ही रहे हैं। जबकि हर साल राज्य के करीब एक लाख से अधिक स्टूडेंट बीएड कर रहे हैं।

क्या होगा असर : सरकार पर कॉलेजों को मान्यता देने का दबाव है, मगरएनसीटीई अपना रुख पहले ही साफ कर चुकी है। ऐसे में 2017 तक नएकॉलेज खुलने मुश्किल है तो कम होता रुझान और खाली होती सीटें कईकॉलेजों पर ताले लगवा देगा।

11 हजार सीटें खाली : कॉलेज संचालक चिंतित

इस साल पहली काउंसलिंग के बाद बीएड में साढ़े सात और बीएसटीसी में तीन हजार सीटें खाली है। दूसरी काउंसलिंग के लिए कॉलेज संचालक लगातार सरकार पर दबाव बना रहे हैं। इधर, फाइल शिक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल के पास पेंडिंग हैं। 

क्यों बनी ऐसी स्थिति : हर साल एक लाख 80 हजार के करीबन स्टूडेंट्स पीटीईटीमें शामिल होते हैं, मगर इस 28 हजार स्टूडेंट कम पहुंचे। सिर्फ डेढ़ लाख विद्यार्थीही परीक्षा में शामिल हुए। राज्य में 90 हजार सीटें है। नौकरियों के घटते अवसरोंपर स्टूडेंट्स को बीएड से दूर करना शुरू कर दिया है। वहीं 25 हजार स्टूडेंट्स जम्मू सहित अन्य राज्यों से बीएड कर लेते हैं। तो प्रदेश में सात लाख बीएड धारीबेरोजगार हैं।

क्या होगा असर : पीटीईटी की नोडल एजेंसी ने इस बार परीक्षा देने वाले सभी स्टूडेंट्स से दो हजार रुपए ले रहा है। जबकि पहले मेरिट के आधार पर फीस ही ली जाती थी। कहा गया है कि काउंसलिंग के बाद सलेक्ट नहीं होने वाले विद्यार्थी को 1500 रुपए लौटा दिए जाएंगे। यानी यूनिवर्सिटी ने तो कमाई का जरिया ढूंढा, मगर सीटें खाली रहने की समस्या कॉलेजों के मत्थे मंढ दी। राजस्थान प्रदेश निजी कॉलेजसंघ के अध्यक्ष नवरंग चौधरी ने बताया कि पिछले साल 12 हजार सीटें खाली रह गई थी। अगर ऐसे ही हालात इस बार भी रहे हैं तो कॉलेज बंद होने लगेंगे। सरकार कोजल्द कदम उठाने चाहिए।

'' जिस अनुपात में बीएड धारी तैयार हो रहे हैं, उस अनुपात में नौकरियां नहीं हंै। एनसीटीई की रिपोर्ट के तहत अगले पांच-छह साल में नए कॉलेज खोलना मुश्किल है।
अशोक संपतराम, प्रमुख शासन सचिव,स्कूल शिक्षा(अरविंद शर्मा,दैनिक भास्कर,सीकर,26.8.11)
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Palash Biswas
Pl Read:
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